दरअसल ऑनलाइन गेमिंग के दौरान स्क्रीन हर सेंकड नए अवतार में नजर आती है। रोमांच ज्यादा होता है। कई ऑनलाइन गेम्स मल्टीप्लेयर होते हैं, जिसमें अनजान बच्चे भी ग्रुप बनाकर एकसाथ गेम खेलते हैं। कई बार बच्चा इनमें खतरनाक गेमों में भी फंस जाता है।
एक-दूसरे को हराने और जीतने की होड़ में बच्चे लगातार कई राउंड खेलते रहते हैं। 10 मिनट का गेम कब घंटे-दो घंटो में बदल जाता है बच्चों को पता ही नहीं चलता और यही से शुरू होता है गेमिंग की लत। जो कि बढ़ते बच्चों के विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है.
ज्यादा वक्त इंटरनेट गेम्स खेलने वाले बच्चों की फोकस करने की क्षमता कम हो जाती है।
ऐसे बच्चों का झुकाव ज्यादातर नेगेटिव मॉडल्स पर होता है। बच्चों में धैर्य कम होने लगता है।
बच्चे पावर में रहना चाहते हैं।सेल्फ कंट्रोल खत्म हो जाता है। कई बार बच्चे हिंसक हो जाते हैं।
बच्चे सामाजिक जीवन से दूर होकर अकेले रहना पसंद करने लगते हैं।बच्चे के व्यवहार और विचार दोनों पर इंटरनेट गेमिंग का असर देखा गया है। बच्चे मोटापे और डाइबिटीज का शिकार हो जाते हैं।साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक अगर एक बार बच्चे को इंटरनेट गेमिंग की लत लग जाती है तो फिर बिना इंटरनेट के रहना बच्चे के लिए मुश्किल हो जाता है। बच्चे इंटरनेट की जिद करते ही हैं। माता-पिता के मना करने पर कई बार बच्चे आक्रामक हो जाते हैं।
अध्ययन में पाया गया है कि डिवाइस और गैजेट्स की वजह से बच्चों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। यहां तक बच्चे डाइबिटीज का भी शिकार हो रहे हैं। ऐसा नहीं है कि ऑनलाइन गेम्स खेलने वाला हर बच्चा गेमिंग लत का शिकार है लेकिन एक्सपर्ट के मुताबिक गेम खेलने का शौक कब आदत में बदल जाए, इसके लिए माता-पिता को बच्चे की गतिविधियों पर नजर बनाए रखना होगा।
माता पिता ये तय करें कि बच्चे को किस उम्र में कौन सा गैजेट/गेम या डिवाइस देना है।
नन्हे-मुन्नों को मोबाइल पर गाने ना दिखाएं। बच्चों को इंटरनेट का इस्तेमाल पढाई सम्बन्धी जरुरी काम के लिए ही करने दें।
अगर बच्चा इंटरनेट पर गेम खेलता है तो गेम्स खेलने का समय तय करें। आधे घंटे से ज्यादा इंटरनेट गेम्स न खेलने दें।
आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें। अगर बच्चा इंटरनेट गेम्स को ज्यादा वक्त देने लगा है तो उसे रोकें। बच्चे इंटरनेट पर क्या करता है कौन सा गेम खेलता है उस पर नजर रखें।
अगर बच्चा रोजाना इंटरनेट पर ज्यादा वक्त बिता रहा है तो सतर्क हो जाइए। बच्चा गुमसुम रहने लगेगा और व्यवहार में बदलाव आएगा। बच्चा स्कूल और पढाई से दूर रहेगा। बच्चा सामाजिक जीवन से दूरी बनाकर अकेले रहना पसंद करेगा।
आदत की वजह से बच्चा चिड़चिड़ा हो सकता है। बच्चे का रूटीन बदल जायेगा, खाने-पीने के साथ नींद भी डिस्टर्ब हो सकती है।गेम नहीं खेलने देने की वजह से बच्चा हिंसक भी हो सकता है। अगर आपका बच्चे में ऐसे लक्षण हैं तो बिना देरी करे मनोचिकित्सक से मिलिए।